कविता संग्रह

Saturday, March 2, 2024

अगलगी से बचाव

 आ रही है गर्मी  लू तपीस होत  बेजोड़ जी ।

आग के ये यार है बचाव से करो गठजोड़ जी ।।


जब भी आग लग जाए तो करें नहीं हम भागम भाग।

"रूको लेटो लुढ़को" मूल मंत्र है उपचार जान ।।


पानी बालू भीगा कंबल और अग्निशमन यंत्र।

डायल एक सौ एक पर और सहयोगी सरकारी तंत्र।।


घर बनाएं ,बना हुआ है रखें हवादार जी ।

खिड़की चौड़ी दरवाजा सब रहे खुलादार जी ।।


बिजली रानी बड़ी भयानी यदि खुला तार है ।

सही तरह जो रखे सुरक्षित वही समझदार है ।।


जहां-तहां न माचिस तिल्ली आग जला कर फेंके ।

दीया चूल्हा गैस रसोई रात लाईट ऑन न छोड़ें ।।


जहां तक संभव हो गर्मी में सुबह नौ रसोई।

शाम भी छः बजे जरुरी अगलगी न होई ।।


हम सभी इन बातों को मानें रहेंगे सदा सुरक्षित ।

मिले पका भोजन अनुकूल आग करें सदा रक्षित ।।


- गोपाल पाठक 


Tuesday, September 13, 2022

 भाषा है नदी की धार तरह, 

वह अविरल चंचल हिन्दी ।

है सरल प्रवृति और प्रकृति, 

भारत माँ की बिन्दी ।


नहीं खाश जाति मजहब का, 

नहीं अधिकार किसी का ।

नहीं है कोई क्रय विक्रय की,

भाषा हिन्दी सभी का ।


है व्यापक सर्वत्र विशिष्ठ में, 

एकता की है भाषा ।

समृद्ध है यह हर्षित है, 

निकले कई हैं शाखा ।


ब्रजभाषा ,कन्नौजी ,मगही,

अवधी या बुंदेली ।

राजस्थानी या गढ़वाली, 

सब हिन्दी की बोली ।


यह नहीं शिर्फ उत्तर दिशी की, 

बल्कि दक्षिण पश्चिम ।

पूर्वी या पूर्वोत्तर भारत, 

नहीं है इसकी अंतिम ।


दक्षिण के आचार्य वल्लभा,

रामानुज विट्ठल रामानंद।

पश्चिम नरसी नाम ज्ञानेश्वर,

पूर्वी महाप्रभु चैतन्य।


ऐसे संत कवि अनेक है,

सीमित नहीं, नहीं है अंत।

वर्तमान के अंचल में भी,

हिंदी शोभित भविष्य अनंत।


           - गोपाल पाठक 



Sunday, August 21, 2022

विश्व वरिष्ठ नागरिक दिवस

 जन्म दिया हूँ पता नहीं रहेगा मेरे पास।

वर्तमान तो देख रहा भविष्य की नहीं आश।।


आज उत्सव कल महोत्सव या होगा उपहास ।

विधि विधाता सब कुछ जाने निज सुत सुता परिभाष।।


कहने को तो बेटा बेटी बहु सुन्दर परिवार।

कल का कोई भरोसा नहीं है कौन होगा दुराचार ??


तीन-तीन चार दश सदस्य कुशल भरा परिवार ।

भले आज आनंद हो कल कौन खेवनहार ??


                             - गोपाल पाठक

Saturday, August 13, 2022

अर्थ ही अर्थ है

आजादी का पचहत्तर वर्ष 

और हर घर तिरंगा

राष्ट्रवाद का बह रहा है यमुना गंगा

पर‌ यमुना गंगा निर्मल है! 

स्वच्छ है!

या दिल्ली कानपुर जैसा 

यह प्रश्न है ।

डुबकी लगाऊं या हाथ जोड़ लूं

"आस्था के कुंभ में डुबकी धर्म है"

सरकार रूपी संत का यही कथन है।

हे संत ! 

यह दिखावा तो नहीं

आपका छलावा तो नहीं 

आप धर्म और कर्तव्य से विमुख हैं

कह रहा हूं यह कटू 

परन्तु ; परम सत्य है।

कैसा उत्सव अमृत महोत्सव 



सुनो ; यदि कान है!

पचहत्तर वर्ष हो गये

झोपड़ी में भी नहीं सड़क पर 

भूखे आज चित्कार है 

नौजवान वेरोजगार है , 

महंगाई कमरतोड़ मार है 

और आपकी कथन इनके लिए नहीं ,

यह कैसा व्यवहार है ।

राजनीति की चासनी में मिठास तिरंगा तले!

नहीं!

तिरंगा आन-वान-शान के प्रतिक है

देश का स्वाभिमान है

आप कहें या ना कहें 

तिरंगा हर देशवासियों के अरमान है।

देश की आजादी की आहुति में

अपने प्राणों के आहूत करने वाले

सर्वस्व समर्पण करने वाले

परमवीर योद्धाओं के आत्मा की शांति

तेरह से पंद्रह अगस्त तक

केवल हर घर तिरंगा से नहीं !

शिक्षा स्वास्थ्य रोजगार से है

शांति सद्भाव से है

यही हमारे पूर्वजों का तर्पण है

हे महात्मा !

आपके शिष्य अनुयाई दिनचर 

केवल तिरंगे के लिए नहीं हर घर

उस झोपड़ी में झांक 

जहां कोई सर पे हाथ रख सोच रहा 

कूड़े बिन रहे बच्चों को ताक

जो उसी में जीवन का स्वप्न देख रहा

हाय ! आज उन महापुरूषों की बलिदानी 

इस पर व्यर्थ है

भले आप को अर्थ ही अर्थ है।

               © गोपाल पाठक


Monday, February 21, 2022

मगही हमर मातृभाषा.....

 मगही हमर मातृभाषा एकरे से हम सिखली ।

लईका से अब बड़ा होके असल जवानी पईली।।


मईया बाबुजी सबसे पहिले मगही भाषा बोलयलन ।

हिन्दी अउ अँगरेजी बोलिया सब मगहीये में सुनयलन ।।


स्कूलवा में भी मास्टर साहेब मगहीया में पढ़यलन ।

भले हिन्दी कितबबा में पढ़ मगही में समझयलन ।।


चॉक हई अँगरेजी लेकिन चॉकबा लाओ रे लईकन ।

डस्टर के डस्टरवा कहके अनुवाद असानी कयलन ।।


लोग सब पहिले मगही के गाँव गंवार बतयलन ।

एही से अभी भी कुछ अइसन हथ बोले में सरमयलन ।।


तनि जानल बड़कन भईया दीदी मगही भाषा ।

छोटकन के तू मत भड़काब पुरखन धरले आशा ।।


मगध क्षेत्र के मगही संस्कृति सब मिलकर बढ़ाब ।

देश विदेश में ई भाषा के नया रूप देखाब ।।

                     *****

                              © गोपाल पाठक 

#मातृभाषा_दिवस





Friday, February 4, 2022

ऋतुराज बसंत आगमन.....

 नव उमंग नव रंग छटाएं नव यौवन में प्रकृति ।

ललित कलित वन बाग मनोहर हर पल दिखता हर्षित ।।


ठंडी ठिठुरन कांपती धरती अब ली है अंगड़ाई ।

नीला अम्बर धरा पीताम्बर प्रेमी मन बहकाई ।।

मंद मंद मदमस्त हवाएं गुन गुन धुप सुहानी ।

ऋतुराज बसंत आगमन मन हो चला मनमानी ।।


नील पीत हरीत बहुरंगी सुषमा चहुँ दिश छायी ।

नव पल्लव ले तरू लताएं मादकता अधिकायी ।।


जूही चम्पा बेली गेन्दा सरसों खेत में भाये ।

तिसी फूल गगन उतरे तल स्वर्ग मही बन जाए।।


कलरव करते मधुर ध्वनि में पंक्षी डाली-डाली ।

तितली छम-छम भौंरें गूंजन बगिया क्यारी-क्यारी ।।


ताल तलैया हंसते पंकज मञ्जरी आम बौराये ।

शुभ शुभ मंगल नित हो नूतन गुलशन गुल महकाये ।।


                             © गोपाल पाठक


Wednesday, January 12, 2022

घमासान

 सूर्य मकर में हो प्रवेश तो होगा घमासान ।

थाली होगा समर भूमि पर तीर नहीं कमान ।।


चूड़ा ,दही , गुड़ , तिलकुट सब, हष्ट पुष्ट बलवान ।

जिह्वा भाग्य विधाता बन कर ,कहेगा कौन महान ।।


परिचय सभी अकड़ कर  देगा ,सुनो कान इंसान ।

भूत काल से वर्तमान तक ,कैसा हैं खानदान ।।



चूड़ा खेत देश से आ कर ,फेरे मूंछ पर शान ।

परम धन्य *श्री धान बहादुर*,हम उनके संतान ।।


दही महाशय हांडी क्षेत्र से ,दूध पुत्र से जान ।

जोर प्रहार चूड़ा पर होगा ,मचेगा घोर संग्राम ।।


ईख वंश के परम प्रतापी , गुड़ वीर चट्टान ।

सबसे ऊपर चढ़कर गरजे ,ठोके सीना तान ।।


तीलकुट युवराज बलशाली ,सुनो सभी सावधान ।

मसका लाई जिसके हो बाजु ,होगा घोर कोहराम ।।


चार चतुर मद चूर एक साथ , युद्ध होगा आह्वान ।

पेठ हाथ फेर भूख काल हो , आदमी बन भगवान ।।


सबहि नचावत रामु गोसाईं ,थाली हाथ इंसान ।

स्वाद परम बनकर बलवाना ,विजय पताका मान ।।


                                - गोपाल पाठक


Tuesday, October 5, 2021

बेटा कैसी है तैयारी जरा बतला दो..

बेटा कैसी है तैयारी जरा बतला दो ।

मैं आ रहीं हूँ द्वारी तेरी दिखला दो ।।



मेरी सुनो कान अपील

काम करो सब मील 

सुरक्षा न हो  ढील 

रखना चहुँ दिश सलील

जरा बतला दो ।

मैं आ रहीं हूँ द्वारी तेरी दिखला दो ।


कोरोना है बड़ा शैतान,

पर रहना तू सावधान,

मुख मास्क रहे ध्यान,

होगा सदा कल्याण,

जरा बतला दो ।

मैं आ रहीं हूँ द्वारी तेरी दिखला दो ।।

प्लास्टिक का न प्रयोग, 

पानी का न दुरूपयोग, 

पैसा का सदुपयोग, 

गरीबों को मिले भोग, 

जरा बतला दो ।

मैं आ रहीं हूँ द्वारी तेरी दिखला दो ।।


ज्यादा शोर न शराब, 

असामाजिक न भड़काव,

इधर उधर न पेशाब,

कचड़ा का रख रखाब,

जरा बतला दो ।

मैं आ रहीं हूँ द्वारी तेरी दिखला दो ।।


जब मेला हो प्रारंभ, 

कोई करे न हूड़दंग, 

डाले रंग में न भंग, 

जब घूमें साथी संग, 

जरा बतला दो ।

मैं आ रहीं हूँ द्वारी तेरी दिखला दो ।।


                           - गोपाल पाठक 

                                 


                       


Friday, June 4, 2021

दीन दरिद्र पहाड़

 देख सखी मुस्कान छवि नित 

अधरों पे कुछ धार ।

तेज चमकता मुख की शोभा 

भले नहीं गलेहार ।


फटे बसन तन मैल पड़े हैं 

नहीं कोई परवाह ।

हँसी की छटा घटा पटा है 

नहीं विलास की चाह ।


भुज विशाल है कंचन शोभा ,

भूख मरूँ क्या मार ?

लाल सलोने आंगन रूदन 

सुनूँ कैसे चीत्कार  ?

घर घूँघट की लाज बड़ी या

भूख गरीबी मार ।

नारी हूँ नर की शक्ति मैं ,

अबला बन नहीं हार ।


सर पे भार सहज ही लगता ,

दीन दरिद्र पहाड़ ।

धूल बदन हो मन नहीं व्याकुल ,

जेठ दुपहरिया ठाड़ ।


कहूँ कहाँ मैं रोऊँ बताऊँ ,

किसके सामने हाथ ।

कर्म हीनता रोग व्याधि ,

बन बैठे जो अनाथ ।


चलो चलें अपने को साधें 

जो साध्य हो साध ।

निबल नहीं हैं सबल सभी हैं 

पग धर बड़ो अबाध ।


                 - गोपाल पाठक 

                       






Saturday, May 8, 2021

माँ !

 क्या शक्ति है ! कितनी धनी है !

हर विपरीत में माँ सबसे तनी है ।


चिथड़े वसन लिपटे हो तन ।

माँ की आंचल मखमली हर छण ।


सुखी रोटियाँ नमक भात , 

ली हो माँ अपनी हाथ ।

पर वह मखन मलाई से कम नहीं ,

खिलाई हो कोर बांध ।


तपती चिलचिलाती जेठ की दुपहरी ।

माँ साथ रहती देती छाया बन कर प्रहरी ।



वह कड़कड़ाती हाड़ कपाती ठंडी ! 

पुस माघ की ।

छाती में चिपका बिन ऊनी वस्त्र माँ ,

 लड़ती बाघ सी ।


हर स्वप्न हर ख्वाहिशें पुरा करने को ,

जोर लगा देती ।

नहीं है सामर्थ्य पर चमकता तारा सा ,

माँ सुन्दर बना देती ।


हर दुख कष्ट समस्या का हँसते समाधान ।

माँ सच में तू दुनिया में हर शख्सियत से हो महान ।।


                                 - गोपाल पाठक 


Wednesday, December 16, 2020

सुन लो मेरी पुकार......

सुन लो मेरी पुकार !

कोई सुन लो मेरी पुकार !!


थी कली मैं पिता के आंगन, 

अब हूँ मैं ससुराल ।

रोज दंश यहाँ सहना पड़ता ,

सदा मिलती फटकार ।

कोई सुन लो मेरी पुकार .........


बचपन मेरा खेल में गुजरा, 

मिलता था घर में प्यार ।

भाई बहन संग होती ठिठोली, 

अब होता तिरस्कार ।

कोई सुन लो मेरी पुकार .........


हुई जवाँ मैं घर में बड़ी थी, 

चर्चा चली विवाह ।

पिता जी मेरे घर से निकले, 

करने वर व्यापार ।

कोई सुन लो मेरी पुकार .........


कठिन परिश्रम कर एक मिला, 

पति परमेश्वर भगवान ।

पिता हमारे धन कुछ देकर, 

कर दिये मुझको दान ।


कर्मभूमि  को जब मैं आयी, 

थोड़ा दिन मिला मान ।

हुआ आरंभ अब कठोर बचन का, 

हर छण ही अपमान ।

कोई सुन लो मेरी पुकार .........


समझ नहीं मैं पायी थी, 

क्यों मिल रहा अपमान ।

क्या कमियाँ है मुझमें ऐसी,

शुरू हो गया मार ।

कोई सुन लो मेरी पुकार .........


एक दिन ऐसा समय आ गया, 

मिला मुझे जवाब ।

बाप तेरा नहीं धन दिया है, 

क्या करूँ सत्कार ।

कोई सुन लो मेरी पुकार .........


हे कुलक्षिणी कुलघातनी !

छोड़ यहाँ दरबार ।

जाओ अपने माई के घर तू, 

मैं नहीं भर्तार ।

कोई सुन लो मेरी पुकार .........


हे प्राणप्रिय ! विनती मेरी, 

नहीं करो मुझे त्याग ।

पिता सामर्थ्य भर धन दे दिये, 

अब वे हैं लाचार ।

कोई सुन लो मेरी पुकार .........


मेरे पिता के धन से तू नहीं,

होगे मालामाल ।

कुछ करनी तू खुद कर ऐसा, 

धन का हो अंबार ।

कोई सुन लो मेरी पुकार .........


मुझे सीख नहीं तुम से लेना, 

धन कमाने का हाल ।

छोड़ भाग अब घर से मेरे ,

नहीं है मुझको प्यार ।


मार-पीट बतकूचन होते, 

हो गया अब रात ।

अंधियारा का लाभ लेकर, 

फेंक दिया बधार ।

कोई सुन लो मेरी पुकार .........


निर्दय होकर पीट-पीट मुझे, 

किया यहाँ बेहाल ।

नयन सिंधु से आँसू गिर रहा ,

जैसे अविरल धार ।

कोई सुन लो मेरी पुकार .........


नहीं सहारा है कोई मेरा, 

किसे सुनाउँ हाल ।

हे प्रभु! अब सुन कुछ मेरी, 

जन के तारणहार ।

कोई सुन लो मेरी पुकार .........


आधी रजनी पड़ी अकेली, 

इस निर्जन संसार ।

वदन दुख रहा नयन सुख रहा, 

रतिया गुजरे भार ।

कोई सुन लो मेरी पुकार .........

                    © गोपाल पाठक 



 


Wednesday, November 4, 2020

नेता के वश में है जनता....

 [ तर्ज -: भगत के बस में हैं भगवान  ]

नेता के वश में है जनता 

गरीब दुखी बेरोजगार शोषित रहे

यही शोभित सुन्दरता !

नेता के वश में है जनता !!


नेता सीधी जनता की , रोज गाँव में डोले 

जनता को भोली समझे , जनता से आदर बोले

कभी वो आता नहीं था, आया चुनाव की बारी 

हाथ जोड़े चल आगे , चुनाव तक रहता जारी 

भले नहीं कोई काम नाम हो,

सब कुछ रहे पता !

नेता के वश में है जनता !!


देख नेता की माया , चुनाव जब सर पे आया 

आता अब रोजे दर पर , बात कुछ कह भरमाया 

तेरा मैं ख्याल रखूँगा ,मरते दम जनता में रहूँगा 

वोट हमहीं को देना , तेरा सब काम करूँगा 

बड़े बड़े बड़ बोल बोल के ,

जीतते लापता ! 

नेता के वश में है जनता !! 


जीत कर आता नहीं है , प्रित जनता से नहीं है 

कुर्सी से चिपके रहता , कोई परवाह नहीं है 

शान शोहरत के आगे , गाड़ी बंगला को पावे

कौन जनता को देखे , दुबारा कभी न आवे

इस तरह के नेताओं को

कैसे हम जीता ?

नेता के वश में है जनता !!

           -::- 

                  © गोपाल पाठक 

          

Tuesday, November 3, 2020

गणेश वंदना

   हे गौरी पुत्र गणेश गणपति आओ मैं पूजन करूँ ।

   दूँ पान अक्षत फूल चंदन और नीराजन करूँ ।।


   तू विघ्ननाशक बुद्धिदाता विद्या मंगल दाता हो ।

   प्रभु जो भी आये शरण तेरे वो कृपा फल पाता हो।।


  हे नाथ आप अनाथ के तू ख्याल नित ही करते हो ।

 जो भक्ति से पूजन करे उसे शक्ति धन धान्य देते हो ।।


  हूँ अल्प बुद्धि न्यून शुद्धि कपट छल लोभी भरा ।  

  नित पाप हो निज कर्म से पूजन को नहीं कभी मन करा।।


  प्रभु है सुअवसर सुखद दिन एकदंत आप पधारो घर ।

 कर जोड़ कर यही विनती सुन टेर अब कष्टों को हर ।।

                                  --::--

                                        © गोपाल पाठक 

Tuesday, October 20, 2020

जनता जनार्दन !

 जनता जनार्दन! 

समझे...? 

नहीं.... ?

ईश्वर ! भगवान ! ...

यानि ; 

हम जनता महान !

हाँ! 

शब्द सुनो कान 

और मने में रहो खुश ;

कहना हम जनता महान !

भले रहना अंजान 

मूंछ पर हाथ, कहीं भटके न ध्यान !

खोना न पहचान 

गरीब ,धुखी ,बेरोजगार , शोषित होकर सुशोभित अलंकृत नाम

भगत के बस में हैं भगवान !

" भगत ! "

हाँ !

भगत, भक्त  .....

कौन ...? 

नेता ....!

नेता भक्त नहीं ; 

वो हैं भगवान 

करते हैं कल्याण



चुनाव पर्व में

आते द्वार नर्म में

आम जनता को कहते हैं ;

तू मेरी जान !

तुम्हारे लिए हर पल कुर्बान 

चाहे देना पड़े प्राण

सबसे पहले तोहर काम 

भैया ! ऐसी बोली कौन बोले ?

जो हो सामर्थ्यवान

धन के खजान 

जिनका न हो लगाम 

बाहुबली में नाम

जो जिये शान

गाड़ी बंगला आलीशान

और कितना बतायें 

नेता ही हमरे महान! 

हे भगवान......! 

भगत के बस में हैं भगवान!

जनता पक्का शंकर भगवान 

एक लोटा पानी पर ही 

दे देते वरदान !

जनता मंदिर के मूर्ति 

दर पर सर झुकाओ ;

मनोकामना पूर्ति !

जनता देवी माँ

भोली-भाली 

वो कहता ; बस एक बार मईया !

आड़े हाथ मिला ;

फिर काहे आबे भइया 

जनता ब्रह्मा भगवान

हाथ जोड़ दो चार

कर देते बेड़ा पार

जनता बल बुध्दि हनुमान 

सवा किलो लड्डू ;

पूर्ण कर देते मनोकाम !

जनता जनार्दन ईश्वर भगवान ।

                    © गोपाल पाठक 




Saturday, September 26, 2020

हरा भरा है राँची प्यारा

हरा भरा है राँची प्यारा न्यारा शहर हमारा ।
मनमोहक परिदृश्य है सुन्दर देखो दुनिया सारा ।।

कर्क रेखा के पास अवस्थित छोटा नाग से दक्षिण
स्वर्णरेखा के तट पर बस कर प्रकृति हर पल हर्षित 
तरसे नहीं कोई के जी आओ एक दोबारा
हरा भरा है राँची प्यारा न्यारा शहर हमारा ।।


आर्द्र उप-उष्णकटिबंधीय गर्मी डाले न डेरा
हरियाली कर चंचल चितवन करता नया सबेरा 
पर्वत विटप सुखद जलावायु गठबंधन अलग नजारा
हरा भरा है राँची प्यारा न्यारा शहर हमारा ।।

दशम फौल हूंड्रू जल झरना बड़ा अनमोल रतन है
बाबा पहाड़ी देउड़ी मंदिर मनोकामना स्थल है 
मन विक्षिप्त को कांके देता नव जीवन उजियारा
हरा भरा है राँची प्यारा न्यारा  शहर हमारा ।।

मछलीघर ,चिड़ियाघर, कांके डैम बहुत खूब भावे
राजभवन का नक्षत्र वन देख उमंग गगन मन छाये 
आओ घाटी वादियों में घूमों झूमों घर परिवारा 
हरा भरा है राँची प्यारा न्यारा शहर हमारा ।।

                           - गोपाल पाठक

Tuesday, September 1, 2020

जब चुनाव की बारी है

 ये काल बवंडर कैसा उमड़ा अब तक नहीं कोई रोक सका ।

सरकारें लाचार दिखती नये बयान से रोज पका ।।


हिम्मत धर लो हिम्मत धरलो और कितना हिम्मत कर लूँ  ।

राजनीति की नये घरौंदे में क्या मैं अब घर कर लूँ ।।


अग्नि धधक भूख बन कातिल तू किसमें मद मस्त रहा ।

चीख पीर तो सुनता नहीं तू गरीबी कोई शब्द रहा ।।


सुखी रोटियाँ नमक भात भी मिल जाये वह दिन सुखी ।

इससे ज्यादा क्या आश है दीन हीन बन बैठ दुखी ।।


शिक्षा स्वास्थ्य और गरीबी हटानी मेरी जिम्मेबारी है ।

इस पर अब तू नहीं बोलना जब चुनाव की बारी है ।।


                                      © गोपाल पाठक 


Monday, August 17, 2020

कोटी नमन कोटी नमन वीर जय जवान को

धाम धन्य वेदी जहाँ आहुति दे प्राण को

कोटी नमन कोटी नमन वीर जय जवान को 

सूर्य भी सकुचाय वायुदेव रोके वेग को

वीर सीना तान दिया दान निज देह को 

काल के कला सब भूल देख बलवान को 

कोटी नमन कोटी नमन वीर जय जवान को 


बौना बन जाय हिमगिरी जिसके सामने 

विटप विकराल मौन रहे सदा सामने 

जल थल नभ पुण्य पांव पड़े मानता 

शौर्य की कहानी कथा धर्म सदा जानता

अग्नि की ज्वाल न जला महाप्राण को 

कोटी नमन कोटी नमन वीर जय जवान को 


स्वाभिमान अरमान बल भीम काय रहे

आन वान शान तीन तीर कमान है

जय हिंद जय हिंद मुख महामंत्र रहे

भारती की रक्षा खड़ा अड़ा हनुमान है 

लाल रक्त धार गंगा धार के समान को

कोटी नमन कोटी नमन वीर जय जवान को 


आंच नहीं आंचल में आये कभी दाग नहीं 

जब आये काम पूर्ण आहुति वह प्राण है

बाल बाँका करे नहीं भारत में ताके नहीं

समिधा पंचतत्व हवन देह का न भान है 

कर्ज निज माटी के चुकाये वह महान को

कोटी नमन कोटी नमन वीर जय जवान को 

          ( जहानाबाद अईरा के लवकुश शर्मा जिन्होंने बारममुला में आतंकवादियों के मुठभेड़ में अपनी जान की पूर्णाहुति देकर वीर गति को प्राप्त हो गये, मैं अपनी कविता से कवितांजली अर्पित करता हूँ । )

                           © गोपाल पाठक 


Friday, July 17, 2020

भगता काहे न आवत द्वार.....

भगता काहे न आवत द्वार गौरा जरा बताई द हमका !
काहे मचल रहे हाहाकार गौरा जरा बताई द हमका !!

सावन चढ़गईल बीत रहल हे मिलत नहीं जलधार
बोल बम नहीं हर हर महादेव शांत पड़ा दरवार 
गौरा जरा बताई द हमका
भगता काहे न आवत द्वार गौरा जरा बताई द हमका !
काहे मचल रहे हाहाकार गौरा जरा बताई द हमका !!

चार छे आठ दस घंटा जो करे रहे इंतजार 
सुनसान काहे हो जाला का भगता  नाराज
गौरा जरा बताई द हमका
भगता काहे न आवत द्वार गौरा जरा बताई द हमका !
काहे मचल रहे हाहाकार गौरा जरा बताई द हमका !!

भांग रमाये धुनी रमाये होता था जयकार 
बोल काँवरिया शिव के धाम सुने नहीं इसबार 
गौरा जरा बताई द हमका
भगता काहे न आवत द्वार गौरा जरा बताई द हमका !
काहे मचल रहे हाहाकार गौरा जरा बताई द हमका !!

का गंगा के पानी सुख गइल का पथ रोके पहाड़
का भगता पर कष्ट आ गइल आवत न दरवार 
गौरा जरा बताई द हमका
भगता काहे न आवत द्वार गौरा जरा बताई द हमका !
काहे मचल रहे हाहाकार गौरा जरा बताई द हमका !!

का भीर पड़ल हे भारी लगे नहीं मन ध्यान 
कउन समस्या आ गेल जाहिल कर रहे व्यवधान
 गौरा जरा बताई द हमका
भगता काहे न आवत द्वार गौरा जरा बताई द हमका !
काहे मचल रहे हाहाकार गौरा जरा बताई द हमका !!
                         ।।  समाप्त ।।
                         
                                     © गोपाल पाठक 







Saturday, July 4, 2020

आते रहल सावन सुहान

सईंयाँ ; आते रहल सावन सुहान, 
कि लाद तू सामान मोरा के ।
            
मंगिया के सिनुर लाली अँखियाँ के काजर
गोरे रे वदन लेपन चंदन केशर महावर 
औरे लगायब मेंहन्दी लाल 
कि लाद तू सामान मोरा के ।।१॥


सईंयाँ ; आते रहल सावन सुहान, 
कि लाद तू सामान मोरा के ।

हरी हरी चूड़ी हरा साड़ी परिधान
चमक दमक बिंदी सोने कुण्डल कान
करब हम सोलहो सिंगार 
कि लाद तू सामान मोरा के ।।२।।

सईंयाँ ; आते रहल सावन सुहान, 
कि लाद तू सामान मोरा के ।

कमर कमरधनी पांव पायल बिछिया 
नकवा के नाशामणि गला रे हंसुलिया
अउरे दो चार मोती माल 
कि लाद तू सामान मोरा के ।।३।।

सईंयाँ ; आते रहल सावन सुहान, 
कि लाद तू सामान मोरा के ।

कारी कारी बदरा से गिरे झीमिर पनिया 
सारी देह भींग बून्दी लागे जैसे मणिया 
झूलवा झूलव दोनों साथ 
कि लाद तू सामान मोरा के ।।४।।

सईंयाँ ; आते रहल सावन सुहान, 
कि लाद तू सामान मोरा के ।

                         - गोपाल पाठक 
                               

[ सामान = शृंगार संबंधित ]



Sunday, May 17, 2020

बन बैठे हैं अंजान....

दिखती नहीं या देखती नहीं 
मंजर ये हाल ।
भूख की ज्वाला पैरों में छाला ,
तड़पन पुकार ।


जो बनया तेरा आलीशान ,
सोये हो खा कर मधुर पान
वो मजदूर मजबूर है साहब ! 
चीख टीस सुना कभी कान ?

ये तो आदत ही नहीं , पर पीड़ा सुनना ,
राजनेताओं में हो संस्कार ।
धन की धमक शोहरत की चमक से,
अधिकारी भी हो जाते लाचार ।

छह साल की कथा सत्तर साल की व्यथा का,
 मचा रहे हो  शोर ।
पर दूध मुँहें बच्चों का रूदन ,
संसदशाहों को नहीं करता झकझोर । 

नया भारत एकीशवीं सदी चांद तक पहुँच ,
मंगल तक है अभियान ।
पर बेवस त्राहित श्रमिक की वेदना से ,
आज बन बैठे हैं अंजान ।

              © गोपाल पाठक 

अगलगी से बचाव

  आ रही है गर्मी  लू तपीस होत  बेजोड़ जी । आग के ये यार है बचाव से करो गठजोड़ जी ।। जब भी आग लग जाए तो करें नहीं हम भागम भाग। "रूको लेट...