।। श्री गणेशाय नम: ।।
-: श्री नवरात्र चालीसा :-
!! दोहा !!
श्री पद नमन गुरू करूँ , मन तम मोह मिटाय ।
मांँ शरण में जाऊँ मैं , प्रथम गुरू मनाय ।।
।। चौपाई ।।
शैलपुत्री रुप प्रथम है माँ की ।
नवरात्रि की प्रथम दिवस की ।।

कर दाएँ त्रिशूल धरें हैं।
बायें कर में कमल लिए हैं ।।
श्वेत वसन हैं माता धारी ।
हम सब भक्तन बने पूजारी ।।
नवरात्र तिथि द्वितीया का पूजन ।
करें ब्रह्मचारिणी माँ का दर्शन ।।

तप आचरण करने वाली ।
माँ ब्रह्मचारिणी कहलाने वाली ।।
कर में माल कमल कमंडल ।
नहीं सवारी हैं माँ पैदल ।।
कृपा दृष्टि कर माँ हम सब को ।
नित दिन ध्यान करूँ माँ तुमको ।।
दूर करो माँ कष्ट समस्या ।
सदा आनंदित रहूँ अरोग्या ।।
-: श्री नवरात्र चालीसा :-
!! दोहा !!
श्री पद नमन गुरू करूँ , मन तम मोह मिटाय ।
मांँ शरण में जाऊँ मैं , प्रथम गुरू मनाय ।।
।। चौपाई ।।
शैलपुत्री रुप प्रथम है माँ की ।
नवरात्रि की प्रथम दिवस की ।।

कर दाएँ त्रिशूल धरें हैं।
बायें कर में कमल लिए हैं ।।
श्वेत वसन हैं माता धारी ।
हम सब भक्तन बने पूजारी ।।
नवरात्र तिथि द्वितीया का पूजन ।
करें ब्रह्मचारिणी माँ का दर्शन ।।

तप आचरण करने वाली ।
माँ ब्रह्मचारिणी कहलाने वाली ।।
कर में माल कमल कमंडल ।
नहीं सवारी हैं माँ पैदल ।।
कृपा दृष्टि कर माँ हम सब को ।
नित दिन ध्यान करूँ माँ तुमको ।।
दूर करो माँ कष्ट समस्या ।
सदा आनंदित रहूँ अरोग्या ।।
तिथि तृतीया नवरात्रा के ।
करें अर्चना चंद्रघंटा के ।।

घंट चन्द्र है भाल विराजे ।
तृतीया शक्ति माँ सिंह पर राजे ।।
दश भुजा माँ शस्त्र विभूषित ।
माँ दर्शन को हम सब लोभित ।।
धूप दीप नैवेद्य चढ़ावें ।
मन मणिकपुर चक्र जगावें ।।
कूष्मांडा माँ तिथि चतुर्थी ।
त्रिविध ताप से मुक्ति करती ।।

माँ निवास करें सूर्यमंडल ।
शहस्त्र सूर्य प्रभा मुखमंडल ।।
अष्टभुजा धारी कुष्मांडा ।
उदर से उत्पन्न की ब्रह्मांडा ।।
कमल कलश धनु बाण धारी ।
चक्र गदा माँ सिंह सवारी ।।
श्रद्धा पूर्ण जो करें सब पूजन ।
यश आयु बढ़ रहे निरोगन ।।
पंचम दिन शुभ नव रात्रि की ।
करें दर्शन स्कन्द माता की ।।

चार भुजी माँ चतुर्भुजी हो ।
कुमार कार्तिकेय की जननी हो ।।
शुभ्र रूप माँ सिंह सवारी ।
कमल पुष्प दो भूजा में धारी ।।
माँ स्कन्द महादेव वामिनी ।
गौरी दुर्गा विद्यादायनी ।।
जो भक्ता तेरी ध्यान लगावें ।
भवसागर से मुक्ति पावें ।।
रूप षष्ठी तिथि माँ कात्यायनी ।
आदि शक्ति माँ अम्बा भवानी ।।

माँ तेरी रूप स्वर्ण समान है ।
चार भुजी तू सिंह सवार है ।।
चन्द्रहास कर कमल पुष्प है ।
वर मुद्रा में माँ दर्शन हैं ।।
दुष्ट दानवों के तू नाशक ।
दीन दुखी के माँ तू पालक ।।
जो भक्ति से ध्यान लगावें ।
अर्थ धर्म कर्म मोक्ष को पावें ।।
दीन दुखी के माँ तू पालक ।।
जो भक्ति से ध्यान लगावें ।
अर्थ धर्म कर्म मोक्ष को पावें ।।
तिथि सप्तमी नवरात्रि की ।
करें पूजन माँ कालरात्रि की ।।

खड्ग खप्पर तू धारी माता ।
कालरात्रि से तू विख्याता ।।
रूप भयंकर खर पर राजे ।
काल देख तुम्हें डर से भागे ।।
रूप तुम्हारी पापी नाशक ।
भक्तन के माँ तू प्रतिपालक ।।
गौर वर्ण माँ गौरी भवानी ।
तू जन के माँ जग कल्याणी ।।

करूणामयी तू स्नेहमयी हो ।
माँ ममता की रूपमयी हो ।।
श्वेत वसन वृष वाहन धारी ।
शुम्भ निशुम्भ माँ तू संघारी ।।
कर डमरू त्रिशूल शोभता ।
ॠषि मुनि तेरा रूप निरखता ।।
जो भक्ति से ध्यान लगावें ।
कलि बंधन से मुक्ति पावें ।।
नौंवीं सिद्धिदात्री में माता ।
सौम्य स्वभाव में तू जगमाता ।।

माँ दुर्गा की नौंवीं शक्ति ।
करें पूजन और मन से भक्ति ।।
जो साधक तेरी ध्यान लगावें ।
अष्ट सिद्धि माँ तुमसे पावें ।।
कर जोड़े हम दीन पुकारे ।
पूर्ण मनोरथ करो हमारे ।।
!! दोहा !!
दास गोपाल नाम जपे , हरो क्लेश विकार ।
अधम मूरख अज्ञानी हूँ , फिर भी पुत्र तुम्हार ।।
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