कविता संग्रह

Saturday, May 8, 2021

माँ !

 क्या शक्ति है ! कितनी धनी है !

हर विपरीत में माँ सबसे तनी है ।


चिथड़े वसन लिपटे हो तन ।

माँ की आंचल मखमली हर छण ।


सुखी रोटियाँ नमक भात , 

ली हो माँ अपनी हाथ ।

पर वह मखन मलाई से कम नहीं ,

खिलाई हो कोर बांध ।


तपती चिलचिलाती जेठ की दुपहरी ।

माँ साथ रहती देती छाया बन कर प्रहरी ।



वह कड़कड़ाती हाड़ कपाती ठंडी ! 

पुस माघ की ।

छाती में चिपका बिन ऊनी वस्त्र माँ ,

 लड़ती बाघ सी ।


हर स्वप्न हर ख्वाहिशें पुरा करने को ,

जोर लगा देती ।

नहीं है सामर्थ्य पर चमकता तारा सा ,

माँ सुन्दर बना देती ।


हर दुख कष्ट समस्या का हँसते समाधान ।

माँ सच में तू दुनिया में हर शख्सियत से हो महान ।।


                                 - गोपाल पाठक 


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