क्या शक्ति है ! कितनी धनी है !
हर विपरीत में माँ सबसे तनी है ।
चिथड़े वसन लिपटे हो तन ।
माँ की आंचल मखमली हर छण ।
सुखी रोटियाँ नमक भात ,
ली हो माँ अपनी हाथ ।
पर वह मखन मलाई से कम नहीं ,
खिलाई हो कोर बांध ।
तपती चिलचिलाती जेठ की दुपहरी ।
माँ साथ रहती देती छाया बन कर प्रहरी ।
वह कड़कड़ाती हाड़ कपाती ठंडी !
पुस माघ की ।
छाती में चिपका बिन ऊनी वस्त्र माँ ,
लड़ती बाघ सी ।
हर स्वप्न हर ख्वाहिशें पुरा करने को ,
जोर लगा देती ।
नहीं है सामर्थ्य पर चमकता तारा सा ,
माँ सुन्दर बना देती ।
हर दुख कष्ट समस्या का हँसते समाधान ।
माँ सच में तू दुनिया में हर शख्सियत से हो महान ।।
- गोपाल पाठक
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