कविता संग्रह

Saturday, July 4, 2020

आते रहल सावन सुहान

सईंयाँ ; आते रहल सावन सुहान, 
कि लाद तू सामान मोरा के ।
            
मंगिया के सिनुर लाली अँखियाँ के काजर
गोरे रे वदन लेपन चंदन केशर महावर 
औरे लगायब मेंहन्दी लाल 
कि लाद तू सामान मोरा के ।।१॥


सईंयाँ ; आते रहल सावन सुहान, 
कि लाद तू सामान मोरा के ।

हरी हरी चूड़ी हरा साड़ी परिधान
चमक दमक बिंदी सोने कुण्डल कान
करब हम सोलहो सिंगार 
कि लाद तू सामान मोरा के ।।२।।

सईंयाँ ; आते रहल सावन सुहान, 
कि लाद तू सामान मोरा के ।

कमर कमरधनी पांव पायल बिछिया 
नकवा के नाशामणि गला रे हंसुलिया
अउरे दो चार मोती माल 
कि लाद तू सामान मोरा के ।।३।।

सईंयाँ ; आते रहल सावन सुहान, 
कि लाद तू सामान मोरा के ।

कारी कारी बदरा से गिरे झीमिर पनिया 
सारी देह भींग बून्दी लागे जैसे मणिया 
झूलवा झूलव दोनों साथ 
कि लाद तू सामान मोरा के ।।४।।

सईंयाँ ; आते रहल सावन सुहान, 
कि लाद तू सामान मोरा के ।

                         - गोपाल पाठक 
                               

[ सामान = शृंगार संबंधित ]



No comments:

Post a Comment

अगलगी से बचाव

  आ रही है गर्मी  लू तपीस होत  बेजोड़ जी । आग के ये यार है बचाव से करो गठजोड़ जी ।। जब भी आग लग जाए तो करें नहीं हम भागम भाग। "रूको लेट...