ये काल बवंडर कैसा उमड़ा अब तक नहीं कोई रोक सका ।
सरकारें लाचार दिखती नये बयान से रोज पका ।।
हिम्मत धर लो हिम्मत धरलो और कितना हिम्मत कर लूँ ।
राजनीति की नये घरौंदे में क्या मैं अब घर कर लूँ ।।
अग्नि धधक भूख बन कातिल तू किसमें मद मस्त रहा ।
चीख पीर तो सुनता नहीं तू गरीबी कोई शब्द रहा ।।
सुखी रोटियाँ नमक भात भी मिल जाये वह दिन सुखी ।
इससे ज्यादा क्या आश है दीन हीन बन बैठ दुखी ।।
शिक्षा स्वास्थ्य और गरीबी हटानी मेरी जिम्मेबारी है ।
इस पर अब तू नहीं बोलना जब चुनाव की बारी है ।।
© गोपाल पाठक
बहुत सुन्दर
ReplyDelete