कविता संग्रह

Tuesday, September 1, 2020

जब चुनाव की बारी है

 ये काल बवंडर कैसा उमड़ा अब तक नहीं कोई रोक सका ।

सरकारें लाचार दिखती नये बयान से रोज पका ।।


हिम्मत धर लो हिम्मत धरलो और कितना हिम्मत कर लूँ  ।

राजनीति की नये घरौंदे में क्या मैं अब घर कर लूँ ।।


अग्नि धधक भूख बन कातिल तू किसमें मद मस्त रहा ।

चीख पीर तो सुनता नहीं तू गरीबी कोई शब्द रहा ।।


सुखी रोटियाँ नमक भात भी मिल जाये वह दिन सुखी ।

इससे ज्यादा क्या आश है दीन हीन बन बैठ दुखी ।।


शिक्षा स्वास्थ्य और गरीबी हटानी मेरी जिम्मेबारी है ।

इस पर अब तू नहीं बोलना जब चुनाव की बारी है ।।


                                      © गोपाल पाठक 


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