हे गौरी पुत्र गणेश गणपति आओ मैं पूजन करूँ ।
दूँ पान अक्षत फूल चंदन और नीराजन करूँ ।।
तू विघ्ननाशक बुद्धिदाता विद्या मंगल दाता हो ।
प्रभु जो भी आये शरण तेरे वो कृपा फल पाता हो।।
हे नाथ आप अनाथ के तू ख्याल नित ही करते हो ।
जो भक्ति से पूजन करे उसे शक्ति धन धान्य देते हो ।।
हूँ अल्प बुद्धि न्यून शुद्धि कपट छल लोभी भरा ।
नित पाप हो निज कर्म से पूजन को नहीं कभी मन करा।।
प्रभु है सुअवसर सुखद दिन एकदंत आप पधारो घर ।
कर जोड़ कर यही विनती सुन टेर अब कष्टों को हर ।।
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© गोपाल पाठक
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