कविता संग्रह

Wednesday, December 16, 2020

सुन लो मेरी पुकार......

सुन लो मेरी पुकार !

कोई सुन लो मेरी पुकार !!


थी कली मैं पिता के आंगन, 

अब हूँ मैं ससुराल ।

रोज दंश यहाँ सहना पड़ता ,

सदा मिलती फटकार ।

कोई सुन लो मेरी पुकार .........


बचपन मेरा खेल में गुजरा, 

मिलता था घर में प्यार ।

भाई बहन संग होती ठिठोली, 

अब होता तिरस्कार ।

कोई सुन लो मेरी पुकार .........


हुई जवाँ मैं घर में बड़ी थी, 

चर्चा चली विवाह ।

पिता जी मेरे घर से निकले, 

करने वर व्यापार ।

कोई सुन लो मेरी पुकार .........


कठिन परिश्रम कर एक मिला, 

पति परमेश्वर भगवान ।

पिता हमारे धन कुछ देकर, 

कर दिये मुझको दान ।


कर्मभूमि  को जब मैं आयी, 

थोड़ा दिन मिला मान ।

हुआ आरंभ अब कठोर बचन का, 

हर छण ही अपमान ।

कोई सुन लो मेरी पुकार .........


समझ नहीं मैं पायी थी, 

क्यों मिल रहा अपमान ।

क्या कमियाँ है मुझमें ऐसी,

शुरू हो गया मार ।

कोई सुन लो मेरी पुकार .........


एक दिन ऐसा समय आ गया, 

मिला मुझे जवाब ।

बाप तेरा नहीं धन दिया है, 

क्या करूँ सत्कार ।

कोई सुन लो मेरी पुकार .........


हे कुलक्षिणी कुलघातनी !

छोड़ यहाँ दरबार ।

जाओ अपने माई के घर तू, 

मैं नहीं भर्तार ।

कोई सुन लो मेरी पुकार .........


हे प्राणप्रिय ! विनती मेरी, 

नहीं करो मुझे त्याग ।

पिता सामर्थ्य भर धन दे दिये, 

अब वे हैं लाचार ।

कोई सुन लो मेरी पुकार .........


मेरे पिता के धन से तू नहीं,

होगे मालामाल ।

कुछ करनी तू खुद कर ऐसा, 

धन का हो अंबार ।

कोई सुन लो मेरी पुकार .........


मुझे सीख नहीं तुम से लेना, 

धन कमाने का हाल ।

छोड़ भाग अब घर से मेरे ,

नहीं है मुझको प्यार ।


मार-पीट बतकूचन होते, 

हो गया अब रात ।

अंधियारा का लाभ लेकर, 

फेंक दिया बधार ।

कोई सुन लो मेरी पुकार .........


निर्दय होकर पीट-पीट मुझे, 

किया यहाँ बेहाल ।

नयन सिंधु से आँसू गिर रहा ,

जैसे अविरल धार ।

कोई सुन लो मेरी पुकार .........


नहीं सहारा है कोई मेरा, 

किसे सुनाउँ हाल ।

हे प्रभु! अब सुन कुछ मेरी, 

जन के तारणहार ।

कोई सुन लो मेरी पुकार .........


आधी रजनी पड़ी अकेली, 

इस निर्जन संसार ।

वदन दुख रहा नयन सुख रहा, 

रतिया गुजरे भार ।

कोई सुन लो मेरी पुकार .........

                    © गोपाल पाठक 



 


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