चल पड़ा कर्तव्य पथ पंथ के बचाव में
याद आद आ रहा है घर बह रहा न भाव में
भारती की कोख सोख घाव कर कोरोना
ताक रख दिया भोग राग सुख सोना
चाहत की द्वंद मन पतंग तंग रंग है
छोड़ हटूँ कैसे महामारी भारी जंग है

याद के तनाव नाव डगमग डोलता
हिय कुंज रूह कर्म धर्म को बोलता
देश जगत संकट विकट विकराल है
लील कर रहा है रोग बन बड़ा काल है
काश रहूँ मैं भी घर संग परिवार में
मेल खेल हंसी खुशी गीत प्रीत राग में
पर आज डटे रहना है करना रक्षा
थोड़ी मेरी भूल कोरोना करदे भक्षा
© गोपाल पाठक
याद आद आ रहा है घर बह रहा न भाव में
भारती की कोख सोख घाव कर कोरोना
ताक रख दिया भोग राग सुख सोना
चाहत की द्वंद मन पतंग तंग रंग है
छोड़ हटूँ कैसे महामारी भारी जंग है

याद के तनाव नाव डगमग डोलता
हिय कुंज रूह कर्म धर्म को बोलता
देश जगत संकट विकट विकराल है
लील कर रहा है रोग बन बड़ा काल है
काश रहूँ मैं भी घर संग परिवार में
मेल खेल हंसी खुशी गीत प्रीत राग में
पर आज डटे रहना है करना रक्षा
थोड़ी मेरी भूल कोरोना करदे भक्षा
© गोपाल पाठक
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