हूँ जीव मैं छोटा जग में ,
नफरत मुझसे करते ।
करता जब चुंबन गालों पर,
कसरत अंगों में करते ।
करते वे गलती खुद अपने,
मैं सबक सिखाने आता ।
कूड़े कचड़े को ढेर ढेर कर,
सही राह दिखाने आता ।
है मनुजों से खास लगाव,
जब उनसे मिलने आता ।
अपनी मधुर ध्वनि को हम,
उनकी कानों तक पहुँचाता ।
क्या गजब शक्सियत है मेरी,
बड़ो के दील बस जाते ।
हाथी मच्छर की युध्द कहानी,
बच्चों के मन भाते ।
गर्व मुझे तो तब होता ,
जब न्यूज मेरा बनाते ।
मच्छर ट्रेन के टक्कर में,
ट्रेन को ही पलटाते ।
© गोपाल पाठक
भदसेरी
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