उठो आज दिन तुम्हारा है ,
जीवन से क्यूँ हरा है ?
व्यवस्था बना खटारा है ,
उठ लाडले माँ के प्यारे
ये देश बहुत ही प्यारा है |
युवा तुम्हारे ज्वाला अंदर ,
दे चिनगारी जला समंदर ,
शांत नहीं रह गूँजो अंबर ,
शत्रु तेरे वार करे तो ,
दे सीने में उसको खंजर |
रग रक्त रख तू सो नहीं ,
बन शेर तू गिदड़ नहीं ,
हो वीर तू निर्बल नहीं ,
कुछ काम कर ऐसा दिखा
दुनिया में तेरे जोड़ नहीं |
भुज दंड बाहु बल तेरे ,
दहाड़ कर दुश्मन डरे ,
भयभीत होकर खुद मरे ,
बैठो नहीं अब वीर तू
इस देश में जब तू रहे |
**********************"""""******
- गोपाल पाठक
भदसेरी
No comments:
Post a Comment