कविता संग्रह

Sunday, December 29, 2019

आज का बचपन कल की याद !

मस्ती जरा करलें छुट्टी में जो आया ।
चलो देखें उपवन कुसुम खुशबू लाया।।

महके बेली चंपा चमेली सुहाया ।
बेला गेंदा गूलमोहर गुद गुदाया ।।

शीत की लरियाँ मोती शाद पर छाया ।
मिलन शुभ सुबह किरण खूब लुभाया ।।

बच्चे  न होश लगे कड़क ठंडी ।
खेले कूदे वाटिका लगे मंडी ।।

झूला झूल फिसल चढ़े कठघोड़ा ।
चूहा पेट दौड़े हो पानी पकौड़ा ।।

जब पों पों आवाज भोपों से आयी ।
चिलम भर कटोरी खा लें मलाई ।।

मा बाप सोंचे बचपन लरकाई ।
मेरो मातु पितु सुलाये रजाई ।।

कुहासा बड़ी ठंड घूमो न बाहर ।
पीठा रोटी मोटी चोखा से आदर ।।

सुबह शाम बीते अंटा गुली डंडा ।
साथी के संग चूड़ा आलू औंधा ।।

गूंड़ चुटार कोलसार मालिक लुटाते ।
घर दस बीस मित चाटे चाट आते ।।

किसका सुखद बचपन लागे सुहाना ।
पाठक सोंचे मन में की ये वो जमाना ।।

                                   © गोपाल पाठक
                                            भदसेरी


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