मस्ती जरा करलें छुट्टी में जो आया ।
चलो देखें उपवन कुसुम खुशबू लाया।।
महके बेली चंपा चमेली सुहाया ।
बेला गेंदा गूलमोहर गुद गुदाया ।।
शीत की लरियाँ मोती शाद पर छाया ।
मिलन शुभ सुबह किरण खूब लुभाया ।।
बच्चे न होश लगे कड़क ठंडी ।
खेले कूदे वाटिका लगे मंडी ।।
झूला झूल फिसल चढ़े कठघोड़ा ।
चूहा पेट दौड़े हो पानी पकौड़ा ।।
जब पों पों आवाज भोपों से आयी ।
चिलम भर कटोरी खा लें मलाई ।।
मा बाप सोंचे बचपन लरकाई ।
मेरो मातु पितु सुलाये रजाई ।।
कुहासा बड़ी ठंड घूमो न बाहर ।
पीठा रोटी मोटी चोखा से आदर ।।
सुबह शाम बीते अंटा गुली डंडा ।
साथी के संग चूड़ा आलू औंधा ।।
गूंड़ चुटार कोलसार मालिक लुटाते ।
घर दस बीस मित चाटे चाट आते ।।
किसका सुखद बचपन लागे सुहाना ।
पाठक सोंचे मन में की ये वो जमाना ।।
© गोपाल पाठक
भदसेरी
चलो देखें उपवन कुसुम खुशबू लाया।।
महके बेली चंपा चमेली सुहाया ।
बेला गेंदा गूलमोहर गुद गुदाया ।।
शीत की लरियाँ मोती शाद पर छाया ।
मिलन शुभ सुबह किरण खूब लुभाया ।।
बच्चे न होश लगे कड़क ठंडी ।
खेले कूदे वाटिका लगे मंडी ।।
झूला झूल फिसल चढ़े कठघोड़ा ।
चूहा पेट दौड़े हो पानी पकौड़ा ।।
जब पों पों आवाज भोपों से आयी ।
चिलम भर कटोरी खा लें मलाई ।।
मा बाप सोंचे बचपन लरकाई ।
मेरो मातु पितु सुलाये रजाई ।।
कुहासा बड़ी ठंड घूमो न बाहर ।
पीठा रोटी मोटी चोखा से आदर ।।
सुबह शाम बीते अंटा गुली डंडा ।
साथी के संग चूड़ा आलू औंधा ।।
गूंड़ चुटार कोलसार मालिक लुटाते ।
घर दस बीस मित चाटे चाट आते ।।
किसका सुखद बचपन लागे सुहाना ।
पाठक सोंचे मन में की ये वो जमाना ।।
© गोपाल पाठक
भदसेरी
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