
हे महावीर हनुमान पवन सुत,
विनय है तुमसे हमार ।
बीच भँवर में पड़ा अकेला,
कैसे पाऊँ पार ?
पवन सुत कैसे पाऊँ पार......
नहीं कोई है मेरा सहार,
किसे सुनाऊँ हाल ।
अब आगे नहीं कुछ भी दिखता,
मंद हो गया चाल ।
पवन सुत कैसे पाऊँ पार......
भार धरा पर बन के जीना,
लगता बड़ा हराम ।
राह नहीं मुझे दिख रहा है,
पथ का दे मुझे ज्ञान ।
पवन सुत कैसे पाऊँ पार......
हिम्मत मेरा हार रहा है,
पथ आगे अंजान ।
किस सुपथ को कैसे जाऊँ,
किसको धरूँ मैं ध्यान ।
पवन सुत कैसे पाऊँ पार......
हे महाबली हे अंजना नंदन,
हे रघुपति के दास ।
हे संकटमोचन भक्तराज,
अब पूर्ण करो मेरा काज ।
पवन सुत कैसे पाऊँ पार.......
-: समाप्त :-
- गोपाल पाठक
भदसेरी
- गोपाल पाठक
भदसेरी
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