-: दोहा :-
परम प्रिया मेरी पावनी ,भले रहे बेवकूफ ।
पर अच्छा सलाहकार है,इसमें तनिक न दुख ।।
नहीं पिता नहीं माता , नहीं बहन मेरा भाई ।
सही सीख नहीं कोई ,कितनो पढ़ा पढ़ाई ।।
-: चौपाई :-
जय देवी जय जय मृगनयनी।
मधुर विलोचन नजरे पैनी ।।1
वामाड़्गी तुम सदा शोभित हो ।
धन पैसे पर सदा लोभित हो ।।2
तुमसे सुन्दर है जग नाहीं ।
चाहे कुरूप कुटिल हिय ताहीं ।।3
मुख प्रसन्न देखूँ मैं तेरे ।
भले जलन दिख नित सबेरे ।।4
दिल दिया हूँ जान भी दूँगा ।
अगले जनम नहीं कभी मिलूँगा ।।5
मोटी हो या पतली मेरी ।
काली जैसी रात अंधेरी ।।6
फिर भी प्रेम नहीं कम करता ।
भले पढ़ोसीन देख मैं मरता ।।7
तेरी रूप अनूप अनोखा ।
शादी कर मैं खाया धोखा ।।8
हो गया तो क्या करूँगा ।
मरते दम तक साथ रहूँगा ।।9
बात तो गूढ़ गूढ़ सिखलाती ।
मैं मति मूढ़ समझ न पाती ।।10
इन बातों पर ध्यान न दूँगा ।
तेरी ख्याल हर क्षण रखूँगा ।।11
सुबह चाय की प्याली लाउँ ।
मल मल कर मैं नित नहलाउँ ।।12
नास्ता भोजन खुद बनाउँ ।
समय मिले तो सर सहलाउँ ।।13
मैडम कह कर जब बुलाता ।
मंद मुस्कान अधर पर आता ।।14
छमक छविली बन इठलाती ।
नहीं रोग फिर भी भरमाती ।।15
तेरी माया तुम पहिचाने।
तिरिया चरित्र देव न जाने ।।16
अनुभव हीन किया है रचना
नहीं कभी दिख पत्नी सपना ।।17
जो यह पढ़े नित पत्नी बीसा ।
नहीं टन मन घंटा चौबीसा ।।18
प्रात शाम नर विनीत सुनाये
सुन हर्षहीं भार्या मुस्काये ।।19
दे वरदान दनादन बेला ।
हाथ जोड़ कह मुर्ख अकेला ।।20
-: दोहा :-
सुन धानी विनती मेरी , तू अति सुघड़ महान ।
क्षण क्षण ऐसी रूप बदल, गिरगिट भी अंजान ।।
-: समाप्त :-
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© गोपाल पाठक
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