कविता संग्रह

Friday, February 15, 2019

तू लोगे कब संज्ञान ?

सिंहासन अब तक खामोश  !
सुनी कान माता बेहोश
जनता हाथ मचलकर रोष
छप्पन ईंची में है दोष ।

छलक गया सिने में दूध
जब आया आंगन में पुत
कब तक सोया रहेगा सुत
भीड़ खड़ी देख माता पुछ ।

पलक नहीं नहीं हीलता सर
पिता के दृग हुया पत्थर
झर झर आँसू बहता निर्झर
वह भूमि पटी अश्रु से तर ।

लालिमा हटी अब मांग से ,सिंदूर हो गया दूर ।
प्रेम पिया की बात को ,छीन लिया  सब  क्रुर ।।

विरह विलाप की वेदना ,संभव नहीं व्याख्यान ।
हे पंथ प्रधान ! तू  , लोगे  कब  संज्ञान ??

      - गोपाल पाठक
            भदसेरी

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