हे नारियाँ !इस जगत की ,
सभी हो दुर्गा के अवतार |
तू समाज में ऐसा कुछ कर
नहीं सहो तू अत्याचार |
माँ दुर्गा नहीं पर्दा में थी,
करती थी दुष्टों पर वार |
चंड-मुंड या शुंभ-निशुंभ हो ,
राह दिखायी यम के द्वार |
द्रौपदी की वह परम प्रतिज्ञा ,
सभी कौरव पांडव से हार |
दी हिम्मत और सदा हौसला ,
नहीं कभी वह निज मन हार ||
वह विरांगना लक्ष्मी बाई ,
युद्ध लड़ी थी अश्व सवार |
विधवा होकर घर नहीं बैठी ,
जब खोई थी निज भर्तार |
जब जब काम पड़े जब जैसा ,
सदा रहो तू नित तैयार ,
शौर्य पराक्रम दिखा शक्ति ,
जो जैसा जब करे व्यवहार |
शांत नहीं बैठ अब अबला तू मानकर ,
धर तू कृपाण जब कोई अपमान है |
मन में न सोंच कर तन में तू रूप धर ,
दुष्टों को दे दमन यही तेरी शान है |
सभी हो दुर्गा के अवतार |
तू समाज में ऐसा कुछ कर
नहीं सहो तू अत्याचार |
माँ दुर्गा नहीं पर्दा में थी,
करती थी दुष्टों पर वार |
चंड-मुंड या शुंभ-निशुंभ हो ,
राह दिखायी यम के द्वार |
द्रौपदी की वह परम प्रतिज्ञा ,
सभी कौरव पांडव से हार |
दी हिम्मत और सदा हौसला ,
नहीं कभी वह निज मन हार ||
वह विरांगना लक्ष्मी बाई ,
युद्ध लड़ी थी अश्व सवार |
विधवा होकर घर नहीं बैठी ,
जब खोई थी निज भर्तार |
जब जब काम पड़े जब जैसा ,
सदा रहो तू नित तैयार ,
शौर्य पराक्रम दिखा शक्ति ,
जो जैसा जब करे व्यवहार |
शांत नहीं बैठ अब अबला तू मानकर ,
धर तू कृपाण जब कोई अपमान है |
मन में न सोंच कर तन में तू रूप धर ,
दुष्टों को दे दमन यही तेरी शान है |
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