विधवा नारी विधुर पुरूष को,
नहीं मिलता सम्मान ।
भार धरा सब माने इनको,
कब लोगे संज्ञान ।
गंग स्वरूपा विधवा नारी
ब्रह्म पुरूष महान ।
ये दोनों हैं इसी रूप में,
हे समाज ! जरा जान ।
नहीं करो इनको उपेक्षित,
दे नया पहचान।
वंदनीय हैं पूज्य रूप में ,
ले आशीष खजान।
शुभ कर्मों से मत कर वंचित ,
दे प्रथम स्थान।
तुम जैसे हो वे भी वैसे ,
अंतर एक का ज्ञान।
नहीं नहीं अंतर मत देखो ,
देखो एक समान ।
चर्म रक्त अस्थी जीय दोनों,
मानवता को मान ।
© गोपाल पाठक
भदसेरी
नहीं मिलता सम्मान ।
भार धरा सब माने इनको,
कब लोगे संज्ञान ।
गंग स्वरूपा विधवा नारी
ब्रह्म पुरूष महान ।
ये दोनों हैं इसी रूप में,
हे समाज ! जरा जान ।
नहीं करो इनको उपेक्षित,
दे नया पहचान।
वंदनीय हैं पूज्य रूप में ,
ले आशीष खजान।
शुभ कर्मों से मत कर वंचित ,
दे प्रथम स्थान।
तुम जैसे हो वे भी वैसे ,
अंतर एक का ज्ञान।
नहीं नहीं अंतर मत देखो ,
देखो एक समान ।
चर्म रक्त अस्थी जीय दोनों,
मानवता को मान ।
© गोपाल पाठक
भदसेरी
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