कविता संग्रह

Friday, October 11, 2019

हे समाज जरा जान !

विधवा नारी विधुर पुरूष को,
नहीं मिलता सम्मान ।
भार धरा सब माने इनको,
कब लोगे संज्ञान ।

गंग स्वरूपा विधवा नारी
ब्रह्म पुरूष महान ।
ये दोनों हैं इसी रूप में,
हे समाज ! जरा जान ।

नहीं करो इनको उपेक्षित,
दे नया पहचान।
वंदनीय हैं पूज्य रूप में ,
ले आशीष खजान।

शुभ कर्मों से मत कर वंचित ,
दे प्रथम स्थान।
तुम जैसे हो वे भी वैसे ,
अंतर एक का ज्ञान।

नहीं नहीं अंतर मत देखो ,
देखो एक समान ।
चर्म रक्त अस्थी जीय दोनों,
मानवता को मान ।

                           © गोपाल पाठक
                                   भदसेरी

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