किसकी आश रखूँ ?
दिल्ली दूर पटना मजबूर ......
मेरे नौनिहालों का ,
हे ईश्वर ! क्या कसूर
ये रोग ! हाय विधाता,
तुम्हें कुछ नहीं आता
कोसूँ तो अब तुम्हें ही
और किसको कोसूँ
अब तू हीं हो खेवैया
तू हीं हो रखवैया
भाग्य भरोसे मेरे लाल है
तू ही हो जिवैया
हे प्रभु क्या कहूँ
कुछ दिन ही बीता है
आये थे द्वार
वादा लम्बी लम्बी कर
अब सुनते नहीं चित्कार
शायद उस समय लेना था वोट
हम क्या जाने इनको मन में इतना है खोट
हमने दिया अपना मत अंधेरा हटाने के लिए
पर बुझा दिया मेरे घर का चिराग
साहब जरा याद करो
कितनी कड़ी धूप
परिस्थिति प्रतिकूल
लाल को छोड़ धूल
दिया था वोट ताकि किस्मत अब खुल
पर आप तो पता नहीं किसमें मसगूल
दिल्ली दूर पटना मजबूर .......
पर याद रखना
अगले साल ज्यादा नहीं दूर

अभी तक एक बार आये हो
उस समय आओगे कई बार
हाथ जोड़ पुछोगे कैसा हाल चाल
भले चिन न पहचान
तू ही कहोगे जनता मेरी जान
सबसे पहले जनता जनार्दन का काम
खाक करोगे
" मर जइहें जीउ त का खइहें घीउ "
यही चरितार्थ करोगे
और यही कर रहे हो
सुन सुन जरा सुन
तस्वीर से जरा आँख कान मत मून
यही तस्वीर
मैं उस दिन भी दिखाऊँगा
तू देख मौन रह जाएगा
फिर यही वादा करोगे
" अब ये रोग कभी नहीं आयेगा "
पर "चमकी" कबे से है
चौदह साल से तू भी है
साहब जरा याद करो
भले तू जा भूल
कली निकल बना था फूल
काल कोठरी में हो गया गुल
अभी तक दिमाग तेरा नहीं खुल
समझ जरा शासन का मूल
दिल्ली दूर पटना मजबूर ......
© गोपाल पाठक
भदसेरी
दिल्ली दूर पटना मजबूर ......
मेरे नौनिहालों का ,
हे ईश्वर ! क्या कसूर
ये रोग ! हाय विधाता,
तुम्हें कुछ नहीं आता
कोसूँ तो अब तुम्हें ही
और किसको कोसूँ
अब तू हीं हो खेवैया
तू हीं हो रखवैया
भाग्य भरोसे मेरे लाल है
तू ही हो जिवैया
हे प्रभु क्या कहूँ
कुछ दिन ही बीता है
आये थे द्वार
वादा लम्बी लम्बी कर
अब सुनते नहीं चित्कार
शायद उस समय लेना था वोट
हम क्या जाने इनको मन में इतना है खोट
हमने दिया अपना मत अंधेरा हटाने के लिए
पर बुझा दिया मेरे घर का चिराग
साहब जरा याद करो
कितनी कड़ी धूप
परिस्थिति प्रतिकूल
लाल को छोड़ धूल
दिया था वोट ताकि किस्मत अब खुल
पर आप तो पता नहीं किसमें मसगूल
दिल्ली दूर पटना मजबूर .......
पर याद रखना
अगले साल ज्यादा नहीं दूर

अभी तक एक बार आये हो
उस समय आओगे कई बार
हाथ जोड़ पुछोगे कैसा हाल चाल
भले चिन न पहचान
तू ही कहोगे जनता मेरी जान
सबसे पहले जनता जनार्दन का काम
खाक करोगे
" मर जइहें जीउ त का खइहें घीउ "
यही चरितार्थ करोगे
और यही कर रहे हो
सुन सुन जरा सुन
तस्वीर से जरा आँख कान मत मून
यही तस्वीर
मैं उस दिन भी दिखाऊँगा
तू देख मौन रह जाएगा
फिर यही वादा करोगे
" अब ये रोग कभी नहीं आयेगा "
पर "चमकी" कबे से है
चौदह साल से तू भी है
साहब जरा याद करो
भले तू जा भूल
कली निकल बना था फूल
काल कोठरी में हो गया गुल
अभी तक दिमाग तेरा नहीं खुल
समझ जरा शासन का मूल
दिल्ली दूर पटना मजबूर ......
© गोपाल पाठक
भदसेरी
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