।। भगवती स्तुति ।।
माँ तेरी चरणों में मेरी विनती
दे दो बुद्धि हमें ना करूँ गलती ।
मन मान नहीं भटकाव रहे
तन शुद्धि नहीं कोई जुड़ाव रहे ।
बस कृपा की दृष्टि को वृष्टि कर दो
मैं पूजा न अर्चन न अर्पण जानूँ
नहीं तर्पण समर्पण विसर्जन जानूँ ।
माँ मुझे नहीं कर्म न धर्म मालूम
नहीं शुद्धियता का न मर्म मालूम ।
कलि काल है जाल विकराल बना
मन मोह माया का जंजाल बना ।
अधर पर न धर कभी नाम तेरा
रसना झूठ खान से भरा मेरा ।
अब तू ही माता उबार करो
सदबुद्धि सदा सुविचार ही दो ।
सुनो मेरी मातु करूणा की वचन
दे दो शरण मुझे माँ अपनी चरण ।
हो जायेंगे धन्य हम धन्य धनी
निच अधमी बनेगा अमूल्य मणी ।
- गोपाल पाठक
भदसेरी
No comments:
Post a Comment